Site icon IGNOU CORNER

गीता में नेतृत्व की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।

परिचय

गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह एक जीवन प्रबंधन का उत्कृष्ट ग्रंथ है जिसमें नेतृत्व (Leadership) की गहरी और प्रभावशाली अवधारणाएँ दी गई हैं। श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद न केवल युद्ध के संदर्भ में, बल्कि जीवन के सभी पहलुओं में मार्गदर्शन देने वाला है।

नेतृत्व की परिभाषा

नेतृत्व वह गुण है जिसके द्वारा व्यक्ति दूसरों को मार्ग दिखाता है, प्रेरित करता है और अपने कर्मों द्वारा उदाहरण प्रस्तुत करता है। गीता में नेतृत्व को सेवा, जिम्मेदारी, निष्काम कर्म और धर्म के पालन से जोड़ा गया है।

गीता में श्रीकृष्ण का नेतृत्व

अर्जुन का परिवर्तन: एक अनुयायी से नेता तक

युद्ध आरंभ होने से पहले अर्जुन मानसिक रूप से कमजोर हो जाते हैं। लेकिन गीता के उपदेश सुनकर वे नेतृत्व की भूमिका में आते हैं। यह परिवर्तन बताता है कि सच्चा नेतृत्व आत्म-ज्ञान और धर्म के पालन से उत्पन्न होता है।

गीता की प्रमुख नेतृत्व शिक्षाएँ

व्यवसाय और संगठनात्मक संदर्भ में प्रासंगिकता

आज के कॉर्पोरेट और सामाजिक नेतृत्व में भी गीता की बातें अत्यंत प्रासंगिक हैं। एक अच्छा मैनेजर वही है जो टीम को प्रेरित करे, स्वयं ईमानदार हो, और निर्णय में नैतिकता का पालन करे।

नेतृत्व और सेवा का संबंध

गीता में यह स्पष्ट कहा गया है कि जो नेता है, वह केवल अधिकार नहीं, बल्कि सेवा का भी प्रतीक है। सेवा भाव से किया गया नेतृत्व समाज को आगे बढ़ाता है।

निष्कर्ष

गीता में नेतृत्व की अवधारणा अत्यंत व्यापक और जीवनोपयोगी है। यह दिखाती है कि एक सच्चा नेता वह होता है जो न केवल निर्णय लेता है, बल्कि अपने कर्म, ज्ञान, और आचरण से दूसरों को भी सशक्त बनाता है। श्रीकृष्ण और अर्जुन की कथा हमें सिखाती है कि नेतृत्व बाहरी नहीं, आंतरिक विकास से उत्पन्न होता है।

Exit mobile version