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“निराशा राग और विराग के कवि हैं” इस कथन की साक्ष्यात्मक सिद्ध कीजिए।

परिचय

हिंदी साहित्य के आधुनिक युग में कई ऐसे कवि हुए जिन्होंने अपनी भावनाओं, अनुभूतियों और चिंतन से साहित्य को समृद्ध किया। इन कवियों में ‘रामधारी सिंह दिनकर’, ‘जयशंकर प्रसाद’, ‘सुमित्रानंदन पंत’ और ‘महादेवी वर्मा’ प्रमुख रहे। परंतु ‘महादेवी वर्मा’ को विशेष रूप से “निराशा राग और विराग की कवयित्री” कहा जाता है।

निराशा राग और विराग का अर्थ

महादेवी वर्मा के काव्य में निराशा राग

महादेवी वर्मा की कविताओं में प्रायः वियोग, पीड़ा, आत्मसंघर्ष और न मिल पाने की कसक झलकती है। वे प्रेम की तलाश में हैं, पर वह प्रेम मूर्त रूप नहीं लेता, और अंततः निराशा में परिणत होता है।

साक्ष्य:

“मैं नीर भरी दुख की बदली।”

यह पंक्ति कवयित्री की आंतरिक पीड़ा और निराशा को व्यक्त करती है। जीवन में संघर्ष, समाज की संकीर्णता, और स्त्री की विवशता उनके रचना-संसार में बार-बार प्रकट होती है।

विराग का भाव

महादेवी वर्मा की कविताओं में विराग का तत्व आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है। उनका प्रेम सांसारिक नहीं होकर आध्यात्मिक रूप लिए हुए है। वे प्रियतम को ईश्वर रूप में देखती हैं।

“तुम हो मेरे जीवन के अरुण,
चिर सजल, चिर नवीन।”

यहाँ ‘प्रिय’ कोई भौतिक पुरुष नहीं, बल्कि कोई दिव्य सत्ता है। इसी कारण उनकी कविताएं उपनिषदिक और रहस्यात्मक बन जाती हैं।

छायावादी प्रभाव

नारी संवेदना और आत्मचिंतन

उनकी कविताओं में स्त्री की पीड़ा, आत्मसंघर्ष, समाज से टकराव और भीतर की बेचैनी झलकती है। वे स्वयं कहती हैं:

“जो तुम आ जाते एक बार!”

इस पंक्ति में प्रतीक्षा, व्याकुलता और अंततः टूटन की भावना है जो निराशा राग की चरम अवस्था को दर्शाती है।

निष्कर्ष

महादेवी वर्मा की कविताएं नारी ह्रदय की संवेदनाओं, आत्मचिंतन, आध्यात्मिक प्रेम और सामाजिक यथार्थ की प्रतिमूर्ति हैं। वे न केवल छायावादी कविता की शिखर कवयित्री हैं बल्कि ‘निराशा राग और विराग की कवयित्री’ के रूप में उनका स्थान अनन्य है। यह कथन पूरी तरह सटीक और साक्ष्यात्मक रूप से सिद्ध होता है।

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