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विश्व एवं मानवता पर प्रकाश डालिए।

परिचय

भगवद्गीता केवल आध्यात्मिकता की बात नहीं करती, बल्कि यह समग्र जीवन दर्शन प्रस्तुत करती है जिसमें ‘विश्व’ और ‘मानवता’ की भावना का गहरा समावेश है। श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश केवल युद्ध के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज के लिए है। यह उपदेश हमें विश्व की एकता और मानवता के कल्याण की शिक्षा देता है।

विश्व की व्यापकता

‘विश्व’ शब्द का तात्पर्य है – समस्त सृष्टि, जिसमें हर प्राणी, प्रकृति, तत्व और समय समाहित होता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने विराट रूप में समस्त विश्व को प्रदर्शित किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि समस्त जगत एक ही चेतना से जुड़ा हुआ है।

“वसुधैव कुटुम्बकम्” – अर्थात् समस्त पृथ्वी एक परिवार है।

मानवता का भाव

मानवता का अर्थ है – हर मनुष्य के प्रति समान दृष्टि रखना, करुणा, सेवा और प्रेम का व्यवहार करना। गीता में यह स्पष्ट किया गया है कि जो व्यक्ति सभी प्राणियों में आत्मा को एक समान देखता है, वही सच्चा ज्ञानी और भक्त है।

गीता में मानवता के मूल तत्त्व

विराट रूप और विश्व भावना

भगवान के विराट रूप में जब अर्जुन समस्त सृष्टि को एक साथ देखता है, तब वह यह समझता है कि प्रत्येक जीव एक ही शक्ति से उत्पन्न है और उसी में विलीन होता है। यह दृश्य मानवता के बोध और विश्व-बंधुत्व की भावना को जागृत करता है।

वर्तमान समय में प्रासंगिकता

मानवता आधारित कर्म

गीता में निष्काम कर्म को मानवता का सर्वोच्च रूप माना गया है। जब हम बिना किसी स्वार्थ के समाज के लिए कार्य करते हैं, तो वह सेवा मानवता की सच्ची पूजा बन जाती है।

निष्कर्ष

‘विश्व’ और ‘मानवता’ की भावना गीता के प्रत्येक श्लोक में व्याप्त है। यह हमें न केवल आध्यात्मिक दृष्टि देती है, बल्कि सामाजिक जीवन को भी श्रेष्ठ बनाती है। यदि हम गीता के इस सिद्धांत को आत्मसात करें, तो विश्व में शांति, सद्भाव और प्रेम की स्थापना संभव है।

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