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चंद को छंद का राजा क्यों कहा जाता है?

प्रस्तावना

हिंदी साहित्य के इतिहास में ‘चंद’ का विशेष स्थान है। चंद, विशेष रूप से चंद बरदाई, को ‘छंद का राजा’ कहा जाता है क्योंकि उन्होंने छंदों का न केवल अद्भुत प्रयोग किया, बल्कि छंदों की विविधता, लयात्मकता और कलात्मक सौंदर्य को चरम स्तर पर पहुँचाया। उनकी रचनाओं में छंदों की स्पष्ट संरचना, भावों की गहनता और भाषा की लोच के अद्भुत उदाहरण मिलते हैं।

चंद बरदाई का परिचय

चंद बरदाई बारहवीं शताब्दी के एक प्रमुख कवि थे, जिन्हें पृथ्वीराज चौहान के राजकवि के रूप में जाना जाता है। उन्होंने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश परंपरा को आत्मसात करते हुए हिंदी काव्य को एक नई दिशा दी। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना ‘पृथ्वीराज रासो’ है, जो वीर रस और राजस्थानी गौरव का प्रतीक मानी जाती है।

छंदों की विविधता और प्रयोग

चंद बरदाई ने अपनी रचनाओं में दोहा, चौपाई, शृंगारिक छंद, वीर रसयुक्त छंद तथा अन्य कई छंदों का प्रयोग किया। उन्होंने छंदों में विषयानुसार लय, गति और अर्थ की समरूपता बनाए रखी। उनकी छंद योजना इतनी सशक्त थी कि पाठक भावों में डूब जाते हैं और उसी समय छंद की संगीतात्मकता भी महसूस करते हैं।

उदाहरण:

‘पृथ्वीराज रासो’ में प्रयुक्त एक प्रसिद्ध छंद है —

“चारबाग पृथ्वी नरेश, चढ़े ध्वज मंडप गोविंद।
शंखनाद भयो गगन, रणहुंकार भयो अनंत॥”

इसमें छंद का माधुर्य, वीर रस और ध्वनि की गूंज अद्भुत रूप से समाहित है।

छंद योजना में महारत

चंद बरदाई ने छंद योजना को काव्य की आत्मा माना और उसमें विविध प्रयोग कर कवित्व शक्ति को चरम पर पहुँचाया। उन्होंने शब्दों के चयन, अनुप्रास अलंकार, यमक और ध्वनि सौंदर्य का ऐसा संतुलित संयोजन किया कि उनके छंद पाठकों के मन में स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं।

छंदों में विषयगत विविधता

उनकी रचनाओं में:

इन सभी विषयों को उन्होंने छंदों के माध्यम से इतनी कुशलता से प्रस्तुत किया कि छंद मात्र पंक्तियाँ न रहकर सजीव चित्र बन गए।

छंद और संस्कृति

चंद बरदाई के छंद तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवेश को दर्शाते हैं। उन्होंने न केवल राजाओं के गुणों का वर्णन किया, बल्कि आमजन के भावों और आशाओं को भी स्वर दिया। छंदों के माध्यम से उन्होंने सामाजिक चेतना और राष्ट्रभक्ति का संदेश भी दिया।

फारसी और ब्रजभाषा का समन्वय

उन्होंने अपने काव्य में ब्रज, अवधि और फारसी शब्दों का सुंदर समन्वय किया, जिससे छंदों की भाषा सजीव, रोचक और भावपूर्ण बन पड़ी। इसने उनके काव्य को अधिक प्रभावशाली बनाया और छंदों को लोकप्रियता दिलाई।

निष्कर्ष

चंद बरदाई को ‘छंद का राजा’ कहना इसलिए उचित है क्योंकि उन्होंने छंदों की भावात्मकता, तकनीकी श्रेष्ठता और कलात्मकता को जिस स्तर तक पहुँचाया, वह अद्वितीय है। उनके छंद न केवल साहित्यिक दृष्टि से उत्कृष्ट हैं, बल्कि वे आज भी पाठकों को प्रेरणा देते हैं। उनके कार्य ने हिंदी काव्य में छंदों की परंपरा को मजबूती दी और उन्हें कालजयी बना दिया।

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