हिंदी काव्य

निम्नलिखित पद्यांशों का सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (क) सरस सुमन की दुर्गन्ध बही

पद्यांश सरस सुमन की दुर्गन्ध बही अपनी विद्रूपता अलग पकाई। वीरन बन सूख गई डाली, काँपी साँसें सन्नता अंगुलाई। तीन प्रकार टेर बाँधी पीड़ित निश्चल निर्जन की अंगड़ाई। आँखों चढ़ मरा एक भ्रम लगी साँस सजल सन्नता से जुगलबंदी। संदर्भ यह पद्यांश आधुनिक हिंदी कविता की नई कविता शैली से लिया गया है जिसमें मानवीय […]

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एम.ए.डी.-01: हिंदी काव्य–1 (आदि काव्य, भक्ति काव्य एवं रीति काव्य) – सभी प्रश्नों के उत्तर लिंक सहित

एम.ए.डी.-01: हिंदी काव्य–1 सत्रीय कार्य (2024–2025) नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर प्रत्येक प्रश्न का विस्तृत उत्तर पढ़ सकते हैं। ये सभी उत्तर सरल भाषा में तैयार किए गए हैं ताकि IGNOU छात्रों को अधिकतम सहायता मिल सके। चंद को छंद का राजा क्यों कहा जाता है? ‘पृथ्वीराज रासो’ की प्रामाणिकता–अप्रामाणिकता से जुड़े विभिन्न

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एम.ए.डी.-01: हिंदी काव्य–1 (आदि काव्य, भक्ति काव्य एवं रीति काव्य) – सभी प्रश्नों के उत्तर लिंक सहित

एम.ए.डी.-01: हिंदी काव्य–1 सत्रीय कार्य (2024–2025) नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर प्रत्येक प्रश्न का विस्तृत उत्तर पढ़ सकते हैं। ये सभी उत्तर सरल भाषा में तैयार किए गए हैं ताकि IGNOU छात्रों को अधिकतम सहायता मिल सके। ‘पृथ्वीराज रासो’ की प्रामाणिकता–अप्रामाणिकता से जुड़े विभिन्न मुद्दों का विश्लेषण कीजिए। विद्यापति पदावली में भक्ति और

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रीति कवियों की कविता में भक्ति और रीति काल के अन्य कवियों से किन मानकों में अलग हैं।

प्रस्तावना हिंदी साहित्य का ‘रीति काल’ लगभग 1650 ई. से 1850 ई. तक का समय माना जाता है। इस काल को श्रृंगार काव्य का युग भी कहा गया है। हालांकि रीति कालीन कवियों में भक्ति भाव भी दिखाई देता है, लेकिन यह भक्ति भाव ‘भक्ति काल’ के कवियों से भिन्न है। इस निबंध में हम

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‘पृथ्वीराज रासो’ की प्रामाणिकता–अप्रामाणिकता से जुड़े विभिन्न मुद्दों का विश्लेषण कीजिए।

प्रस्तावना ‘पृथ्वीराज रासो’ हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसे चंद बरदाई ने रचा। यह ग्रंथ पृथ्वीराज चौहान के जीवन, पराक्रम और संघर्षों को छंदबद्ध रूप में प्रस्तुत करता है। हालांकि, इसकी ऐतिहासिक प्रामाणिकता को लेकर विद्वानों के बीच मतभेद हैं। कुछ इसे इतिहास का स्त्रोत मानते हैं तो कुछ इसे काव्य कल्पना का

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चंद को छंद का राजा क्यों कहा जाता है?

प्रस्तावना हिंदी साहित्य के इतिहास में ‘चंद’ का विशेष स्थान है। चंद, विशेष रूप से चंद बरदाई, को ‘छंद का राजा’ कहा जाता है क्योंकि उन्होंने छंदों का न केवल अद्भुत प्रयोग किया, बल्कि छंदों की विविधता, लयात्मकता और कलात्मक सौंदर्य को चरम स्तर पर पहुँचाया। उनकी रचनाओं में छंदों की स्पष्ट संरचना, भावों की

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