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रीति कवियों की कविता में भक्ति और रीति काल के अन्य कवियों से किन मानकों में अलग हैं।

प्रस्तावना

हिंदी साहित्य का ‘रीति काल’ लगभग 1650 ई. से 1850 ई. तक का समय माना जाता है। इस काल को श्रृंगार काव्य का युग भी कहा गया है। हालांकि रीति कालीन कवियों में भक्ति भाव भी दिखाई देता है, लेकिन यह भक्ति भाव ‘भक्ति काल’ के कवियों से भिन्न है। इस निबंध में हम यह विश्लेषण करेंगे कि रीति कवियों की कविता में भक्ति कैसे अभिव्यक्त होती है और यह रीति काल के अन्य कवियों से किन मानकों में अलग है।

रीति काल में भक्ति का स्वरूप

रीति काल में अधिकांश कवि दरबारी थे और उन्होंने श्रृंगार रस को प्रमुखता दी। फिर भी कुछ कवियों ने भक्ति भाव को भी अपनी रचनाओं में स्थान दिया, जैसे—घनानंद, भूषण, मतिराम आदि। लेकिन इनकी भक्ति भक्ति काल के तुलसी, सूर, कबीर, मीराबाई जैसे कवियों की भक्ति से भिन्न थी।

1. भक्ति की प्रकृति में अंतर

भक्ति काल:

रीति काल:

2. विषयवस्तु का अंतर

भक्ति काल के कवियों ने समाज, धर्म, मोक्ष, सेवा, प्रेम आदि पर गहन विचार किए। वहीं, रीति कवियों की भक्ति में नायक-नायिका का संयोग-वियोग, नायिका की चेष्टाएँ और रूप-सौंदर्य की प्रशंसा केंद्र में रही।

3. भाषा और शैली

भक्ति काल में भाषा सरल, भावप्रवण और लोकभाषा आधारित थी। तुलसी की अवधी, सूर की ब्रजभाषा में आत्मीयता थी। जबकि रीति कालीन भक्ति कवियों की भाषा संस्कृतनिष्ठ, अलंकारों और छंदों से युक्त होती है।

4. उद्देश्य में भिन्नता

भक्ति कालीन कवियों का उद्देश्य आत्मा और परमात्मा के मिलन की अनुभूति कराना था। उन्होंने भक्ति को साध्य माना। परंतु रीति काल के कवियों ने भक्ति को सौंदर्य प्रदर्शन, रीतियों के पालन और काव्य-कौशल के साधन के रूप में अपनाया।

5. उदाहरण

घनानंद: “प्रेम पंथ में जान गंवानी सरल बात है री।”
यहाँ प्रेम की गहराई तो है, लेकिन शैली श्रृंगारिक है।
सूरदास: “मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।”
यहाँ भक्ति की सादगी और बाल रूप में कृष्ण से आत्मीय संबंध दिखता है।

6. भावनात्मकता बनाम कलात्मकता

भक्ति काल में भावनात्मकता सर्वोपरि थी। कवि की अनुभूति पाठक के हृदय में सीधा उतरती थी। लेकिन रीति कालीन कवियों की भक्ति में भाव की जगह कलात्मकता, छंद विन्यास और अलंकार अधिक दिखते हैं।

निष्कर्ष

रीति कालीन कवियों की कविता में भक्ति का स्वरूप भाव से अधिक शैली और सौंदर्य पर आधारित होता है, जो उन्हें भक्ति काल के कवियों से भिन्न बनाता है। जहाँ एक ओर भक्ति काल की भक्ति आत्मा की पुकार है, वहीं रीति काल की भक्ति कलात्मक प्रदर्शन है। दोनों की विशेषताएँ अलग-अलग होते हुए भी हिंदी साहित्य की समृद्धि में समान रूप से योगदान करती हैं।

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