गीता की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर निबंध लिखिए।

परिचय

भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक विरासत का गहन प्रतीक है। इसकी रचना एक ऐसे समय में हुई जब भारतीय समाज गहरे नैतिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा था। इसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि हमें यह समझने में मदद करती है कि गीता का संदेश केवल युद्ध के मैदान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में लागू होता है।

इतिहासिक पृष्ठभूमि

महाभारत काल में भारत एक उथल-पुथल से भरा युग था। राजनीतिक अस्थिरता, पारिवारिक संघर्ष, और धर्म के प्रति भ्रम जैसे हालात प्रचलित थे। इसी समय, कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन की दुविधा और श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया उपदेश गीता के रूप में प्रकट हुआ।

वर्ण व्यवस्था और समाज

गीता की रचना उस समय हुई जब वर्ण व्यवस्था समाज में प्रभावी थी। गीता में वर्णाश्रम धर्म की चर्चा होती है, जिसमें यह बताया गया है कि समाज के प्रत्येक वर्ग का कर्तव्य क्या है। श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को क्षत्रिय धर्म का पालन करने के लिए प्रेरित किया गया।

दार्शनिक संदर्भ

  • सांख्य दर्शन: गीता में आत्मा और शरीर के भेद का उल्लेख सांख्य दर्शन से लिया गया है।
  • योग दर्शन: ध्यान, समाधि, और इंद्रियों पर नियंत्रण का उल्लेख पतंजलि योग सूत्रों से प्रभावित है।
  • वेदांत: अद्वैत और ब्रह्म की व्याख्या गीता में वेदांत की धारा को प्रकट करती है।

धार्मिक संदर्भ

गीता वैष्णव परंपरा से जुड़ी हुई है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। गीता में ईश्वर को सर्वव्यापी, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान बताया गया है। भक्तियोग की व्याख्या हिन्दू धर्म में भक्ति आंदोलन को भी प्रेरित करती है।

आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा

गीता की शिक्षा आत्मा, मोक्ष, धर्म और कर्म पर केंद्रित है। यह शिक्षाएँ भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों जैसे – सत्य, अहिंसा, कर्तव्यनिष्ठा, और आत्मसंयम को दर्शाती हैं।

गीता का सांस्कृतिक प्रभाव

  • गीता ने संत कबीर, तुलसीदास, रामकृष्ण परमहंस जैसे संतों को प्रभावित किया।
  • महात्मा गांधी ने गीता को अपना आध्यात्मिक मार्गदर्शक बताया।
  • भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी गीता का नैतिक बल योगदान रहा।

निष्कर्ष

गीता की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि हमें यह सिखाती है कि यह ग्रंथ केवल धार्मिक उपदेशों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय जीवन के हर पहलू – सामाजिक, दार्शनिक, राजनीतिक और आध्यात्मिक – को प्रभावित करता है। इसकी शिक्षाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस समय थीं।

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