परिचय
‘ॐ’ (ओंकार) भारतीय संस्कृति का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण मंत्र है। भगवद्गीता में ओंकार को ब्रह्म का प्रतीक माना गया है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि यह ओंकार न केवल मंत्र है, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड की ध्वनि, चेतना और ऊर्जा का सार है। इस लेख में हम गीता के अनुसार ओंकार के स्वरूप को संक्षेप में समझेंगे।
ओंकार का अर्थ
ओंकार तीन अक्षरों – अ, उ, म – से मिलकर बना है।
- ‘अ’: ब्रह्मा – सृष्टि का आरंभ
- ‘उ’: विष्णु – पालनकर्ता
- ‘म’: महेश – संहारकर्ता
इस प्रकार, ओंकार संपूर्ण सृष्टि का प्रतिनिधित्व करता है।
गीता में ओंकार का उल्लेख
“ओं इत्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्॥”
– अध्याय 8
इस श्लोक में कहा गया है कि जो मनुष्य मृत्यु के समय ‘ॐ’ का उच्चारण करते हुए ईश्वर का स्मरण करता है, वह परमगति को प्राप्त करता है।
ओंकार का आध्यात्मिक स्वरूप
- यह सृष्टि का आदि नाद (ध्वनि) है।
- यह ध्यान और योग की मूल ध्वनि है।
- यह ब्रह्म और आत्मा की एकता का प्रतीक है।
ओंकार और उपासना
ओंकार के जप से मन शांत होता है, चित्त शुद्ध होता है और व्यक्ति आत्मा से जुड़ता है। गीता में कहा गया है कि साधक को नियमित ओंकार का स्मरण करना चाहिए ताकि वह मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हो सके।
ओंकार के प्रयोग
- ध्यान प्रारंभ करने से पहले
- मंत्रों के उच्चारण से पहले
- शुद्धिकरण एवं साधना में
विज्ञान की दृष्टि से
आज के वैज्ञानिकों ने भी माना है कि ‘ॐ’ ध्वनि से मस्तिष्क की तरंगें स्थिर होती हैं और तनाव कम होता है। यह एक प्रकार की प्राकृतिक कंपन है जो शरीर और मन दोनों को प्रभावित करती है।
निष्कर्ष
गीता में ओंकार को केवल एक ध्वनि नहीं, बल्कि ब्रह्म का स्वरूप माना गया है। यह संपूर्ण सृष्टि का आधार है और साधना का मुख्य साधन भी। गीता का यह संदेश आज के युग में भी अत्यंत प्रासंगिक है, जब व्यक्ति मानसिक शांति की खोज में भटक रहा है – ‘ॐ’ उसे आत्मा और परमात्मा से जोड़ने का सरल मार्ग है।
