परिचय
“धर्मक्षेत्र” शब्द भगवद्गीता के पहले ही श्लोक में आता है – “धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।” यह शब्द अत्यंत गूढ़ और गहराई से भरा हुआ है। इसे केवल युद्धभूमि के रूप में देखना पर्याप्त नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, धर्म और मनोविज्ञान का प्रतीक भी है। इस उत्तर में हम धर्मक्षेत्र की गहराई से व्याख्या करेंगे।
धर्मक्षेत्र का शाब्दिक अर्थ
धर्मक्षेत्र दो शब्दों से मिलकर बना है – “धर्म” और “क्षेत्र”। इसका शाब्दिक अर्थ है – धर्म का क्षेत्र या स्थान। यह वह स्थान होता है जहाँ धर्म की स्थापना होती है या धर्म की परीक्षा होती है।
कुरुक्षेत्र: युद्धभूमि और धर्मभूमि
महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र नामक स्थान पर हुआ था। यह हरियाणा राज्य में स्थित एक पवित्र स्थान है। यह माना जाता है कि यहाँ ऋषि-मुनियों ने यज्ञ किए थे, तप किया था और धर्म की शिक्षा दी थी। इसलिए इसे धर्मक्षेत्र कहा गया।
धृतराष्ट्र की चिंता
गीता के प्रारंभ में धृतराष्ट्र यह पूछते हैं कि “धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः – मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय?” यहाँ वे धर्मक्षेत्र शब्द से चिंतित हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस पवित्र भूमि में उनके पुत्र अधर्मी सिद्ध हो सकते हैं।
धर्मक्षेत्र का दार्शनिक दृष्टिकोण
- मानव मन का क्षेत्र: धर्मक्षेत्र केवल भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि यह हमारे मन, आत्मा और चेतना का भी प्रतीक है जहाँ सद् और असद् (धर्म और अधर्म) के बीच संघर्ष होता है।
- कर्तव्य का क्षेत्र: यह वह स्थान है जहाँ व्यक्ति अपने धर्म, कर्तव्य और नैतिकता की परीक्षा देता है।
- जीवन का युद्ध: जीवन में प्रत्येक निर्णय एक धर्मक्षेत्र है जहाँ व्यक्ति को सही और गलत में चयन करना होता है।
आध्यात्मिक संकेत
गीता यह सिखाती है कि हर व्यक्ति का मन धर्मक्षेत्र है, जहाँ अर्जुन की तरह हम सब दुविधाओं में होते हैं और श्रीकृष्ण जैसे मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है।
आधुनिक सन्दर्भ में धर्मक्षेत्र
आज के समय में धर्मक्षेत्र हमारे कार्यस्थल, घर, समाज और आत्मा के भीतर का वह स्थान है जहाँ निर्णय, नीतियाँ और कर्तव्य तय होते हैं। हर परिस्थिति जहाँ सही और गलत के बीच चुनाव हो, वह धर्मक्षेत्र है।
निष्कर्ष
“धर्मक्षेत्र” केवल एक युद्धभूमि नहीं, बल्कि यह जीवन का एक गूढ़ संकेत है। यह हमें याद दिलाता है कि प्रत्येक परिस्थिति में धर्म की स्थापना करना ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए। यह आत्मा, मन और जीवन का वह क्षेत्र है जहाँ धर्म की परीक्षा होती है।
