प्रस्तावना
बिहारी लाल हिंदी रीति काल के सर्वश्रेष्ठ कवियों में गिने जाते हैं। उन्होंने ‘सतसई’ नामक काव्य रचना के माध्यम से श्रृंगार रस को अभूतपूर्व ऊँचाई प्रदान की। उनकी कविता का प्रमुख विषय श्रृंगार है, जिसमें संयोग और वियोग दोनों पक्षों का सुंदर चित्रण मिलता है। इस निबंध में हम बिहारी की कविता में संयोग और वियोग श्रृंगार का आलोचनात्मक मूल्यांकन करेंगे।
संयोग श्रृंगार का चित्रण
संयोग श्रृंगार का आशय है — नायक और नायिका के मिलन से उत्पन्न प्रेम भावना और आनंद की अनुभूति। बिहारी के पदों में संयोग श्रृंगार की निम्नलिखित विशेषताएँ मिलती हैं:
1. सौंदर्य वर्णन
बिहारी ने राधा और कृष्ण के रूप सौंदर्य, उनकी वेशभूषा, अंग सौंदर्य और मुद्राओं का अत्यंत सूक्ष्म चित्रण किया है। उनकी भाषा अत्यंत बिम्बात्मक और संकेतनात्मक होती है।
2. संकेत और संकोच
संयोग की स्थिति में बिहारी संकोच, संकेत, लज्जा, चंचलता और मुस्कान जैसे क्षणों का चित्रण करते हैं जो कविता को कोमलता प्रदान करता है।
3. सजीव चित्रण
बिहारी के संयोग चित्रण इतने जीवंत होते हैं कि पाठक दृश्य को अपनी आँखों के सामने अनुभव कर सकता है।
“कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौंह के बाण सों, मरत भुवन के नाथ॥”
इस दोहे में राधा के हाव-भावों के माध्यम से प्रेम के संयोग का अत्यंत सुंदर चित्रण हुआ है।
वियोग श्रृंगार का चित्रण
वियोग श्रृंगार का आशय है — प्रेमी युगल के अलगाव से उत्पन्न वेदना और longing की स्थिति। बिहारी ने इसमें भी सूक्ष्मता और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया है।
1. विरह की पीड़ा
वियोग की अवस्था में नायिका की मानसिक अवस्था, उसकी तड़प, बेचैनी और स्मृति को बिहारी ने मार्मिक रूप में व्यक्त किया है।
2. स्वप्न, स्मृति और प्रतीक्षा
वियोग में नायिका कृष्ण के दर्शन को तरसती है, स्वप्नों में उन्हें देखती है, और स्मृतियों में डूबी रहती है। यह सब बिहारी के दोहों में अत्यंत भावुक और कलात्मक रूप में व्यक्त हुआ है।
3. प्रतीकों और संकेतों का उपयोग
बिहारी ने प्राकृतिक प्रतीकों जैसे चाँदनी, कोयल, वर्षा आदि का प्रयोग करके वियोग की मनःस्थिति को और गहराई प्रदान की है।
आलोचनात्मक दृष्टिकोण
- बिहारी की कविता अधिकतर राजा-महाराजाओं और दरबारी जीवन तक सीमित है।
- कविता में नारी को अधिकतर सौंदर्य की वस्तु के रूप में चित्रित किया गया है।
- भावों की तीव्रता होते हुए भी कभी-कभी उसमें यथार्थ जीवन की झलक कम दिखाई देती है।
भाषा और शैली
बिहारी की भाषा ब्रज है, जिसमें गागर में सागर भरने की क्षमता है। एक-एक दोहे में गहन भाव, सौंदर्य और कलात्मकता का अद्भुत समन्वय मिलता है।
निष्कर्ष
बिहारी की कविता में संयोग और वियोग श्रृंगार दोनों का अत्यंत कलात्मक और सूक्ष्म चित्रण मिलता है। उन्होंने प्रेम की दोनों अवस्थाओं को केवल वर्णनात्मक रूप से नहीं, बल्कि अनुभूति की गहराई से प्रस्तुत किया। बिहारी का काव्य श्रृंगार रस का शिखर है और भारतीय काव्य परंपरा में उनका स्थान अडिग है।