संचार प्रणालियाँ: संचार के सिद्धांत और तकनीकें

संचार प्रणालियाँ: संचार के सिद्धांत और तकनीकें

परिचय

संचार प्रणालियाँ सूचना के प्रसारण और प्राप्ति की प्रक्रिया को संदर्भित करती हैं। यह प्रक्रिया विद्युत संकेतों का उपयोग करके की जाती है और इसमें कई तकनीकें और उपकरण शामिल होते हैं। यह लेख संचार प्रणालियों के सिद्धांतों, प्रमुख घटकों, और विभिन्न तकनीकों का अन्वेषण करता है।

संचार प्रणाली के घटक

संचार प्रणाली के मुख्य घटकों में शामिल हैं:

  • प्रेषक (Transmitter): यह वह उपकरण है जो सूचना को विद्युत संकेतों में परिवर्तित करता है और उन्हें प्रसारित करता है।
  • संचरण माध्यम (Transmission Medium): यह वह माध्यम है जिसके माध्यम से संकेत यात्रा करते हैं, जैसे कि तार, रेडियो तरंगें, या फाइबर ऑप्टिक केबल।
  • प्राप्तकर्ता (Receiver): यह वह उपकरण है जो संकेतों को प्राप्त करता है और उन्हें वापस सूचना में परिवर्तित करता है।

मॉड्यूलेशन और डीमॉड्यूलेशन

मॉड्यूलेशन वह प्रक्रिया है जिसमें सूचना संकेत को एक वाहक संकेत पर सुपरइंपोज़ किया जाता है ताकि इसे प्रसारित किया जा सके। डीमॉड्यूलेशन वह प्रक्रिया है जिसमें प्राप्त संकेत से मूल सूचना संकेत को पुनः प्राप्त किया जाता है।

उदाहरण:

रेडियो प्रसारण में, मॉड्यूलेशन का उपयोग ध्वनि संकेतों को रेडियो तरंगों पर सुपरइंपोज़ करने के लिए किया जाता है, और रिसीवर इन तरंगों से ध्वनि संकेतों को पुनः प्राप्त करता है।

प्रकार की संचार प्रणालियाँ

संचार प्रणालियों के विभिन्न प्रकार हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • एनालॉग संचार: इसमें संकेतों का निरंतर रूप से बदलना शामिल है, जैसे कि रेडियो और टेलीविजन प्रसारण।
  • डिजिटल संचार: इसमें संकेतों को बाइनरी कोड (0s और 1s) में परिवर्तित करना शामिल है, जैसे कि कंप्यूटर नेटवर्क और डिजिटल टेलीफोन सिस्टम।
  • वायरलेस संचार: इसमें संकेतों को बिना तारों के प्रसारित करना शामिल है, जैसे कि मोबाइल फोन और वाई-फाई।
  • फाइबर ऑप्टिक संचार: इसमें संकेतों को प्रकाश संकेतों के रूप में फाइबर ऑप्टिक केबल के माध्यम से प्रसारित करना शामिल है, जो उच्च गति और लंबी दूरी के लिए उपयुक्त है।

संचार तकनीकें

कुछ प्रमुख संचार तकनीकें निम्नलिखित हैं:

एएम (एम्प्लीट्यूड मॉड्यूलेशन):

इसमें वाहक संकेत की एम्प्लीट्यूड को सूचना संकेत के अनुसार बदलना शामिल है।

एफएम (फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन):

इसमें वाहक संकेत की फ्रीक्वेंसी को सूचना संकेत के अनुसार बदलना शामिल है।

पीएसके (फेज शिफ्ट कीइंग):

इसमें वाहक संकेत की फेज को सूचना संकेत के अनुसार बदलना शामिल है।

टीडीएम (टाइम डिवीजन मल्टीप्लेक्सिंग):

इसमें कई संकेतों को एक ही चैनल पर समय के अलग-अलग स्लॉट में प्रसारित करना शामिल है।

एफडीएम (फ्रीक्वेंसी डिवीजन मल्टीप्लेक्सिंग):

इसमें कई संकेतों को एक ही चैनल पर विभिन्न फ्रीक्वेंसी बैंड में प्रसारित करना शामिल है।

आवश्यकता

संचार प्रणालियों की कई आवश्यकताएं हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • विश्वसनीयता: संकेतों का सटीक और विश्वसनीय प्रसारण सुनिश्चित करना।
  • क्षमता: अधिकतम डेटा दर और चैनल क्षमता सुनिश्चित करना।
  • लागत: संचार प्रणाली की स्थापना और संचालन की लागत।
  • सुरक्षा: संकेतों की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करना।

उदाहरण

एक मोबाइल फोन कॉल के दौरान, आवाज को एनालॉग से डिजिटल में रूपांतरित किया जाता है, संपीड़ित किया जाता है, और फिर रेडियो तरंगों के माध्यम से प्रसारित किया जाता है। प्राप्तकर्ता का फोन संकेतों को डीमॉड्यूलेट करता है, उन्हें डिकोड करता है, और आवाज में पुनः परिवर्तित करता है।

निष्कर्ष

संचार प्रणालियों के सिद्धांतों और तकनीकों को समझना आधुनिक प्रौद्योगिकी और संचार नेटवर्क के विकास के लिए आवश्यक है। मॉड्यूलेशन, मल्टीप्लेक्सिंग, और विभिन्न संचार माध्यमों का उपयोग करके, हम सूचना को विश्वसनीय और कुशलता से प्रसारित कर सकते हैं।

अंग्रेजी में और पढ़ें: Communication Systems: Principles and Techniques

Communication Systems

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