2025

गीता के अनुसार पूज्य के स्वरूप पर विस्तृत लेख लिखिए।

परिचय भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने जीवन के प्रत्येक पक्ष को स्पष्ट रूप से समझाया है। ‘पूज्य’ का अर्थ होता है – जो पूजनीय हो, अर्थात् जिसे आदर, श्रद्धा और समर्पण के साथ पूजा जाए। गीता में पूज्य के स्वरूप की चर्चा करते समय श्रीकृष्ण ने बताया कि ईश्वर ही सर्वपूज्य है, क्योंकि वह सर्वव्यापी, सर्वज्ञ […]

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गीता में ज्ञान-विज्ञान के स्वरूप को विस्तृत रूप से स्पष्ट कीजिए।

परिचय भगवद्गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन देने वाला दिव्य ग्रंथ है। इसमें ज्ञान और विज्ञान – दोनों के स्वरूप की चर्चा की गई है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान और विज्ञान का ऐसा समन्वित रूप समझाया जो आत्मा, परमात्मा और संसार की सच्चाई को उजागर करता है। इस

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MBG-003: कर्मसंन्यास-आत्मसंयम एवं ज्ञानविज्ञान – Assignment Answers

MBG-003 Assignment: सभी उत्तरों की लिंक यहाँ पर MBG-003 (कर्मसंन्यास-आत्मसंयम एवं ज्ञानविज्ञान) पाठ्यक्रम के सभी प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं। प्रत्येक उत्तर सरल भाषा में और 600+ शब्दों में लिखा गया है ताकि विद्यार्थी इसे आसानी से समझ सकें। गीता में कर्मसंन्यास के अभिप्राय पर विस्तार से लेख लिखिए। गीता में एकात्ममनस्वभाव पर विस्तार

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गीता में आत्मनियंत्रण की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिए।

परिचय भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की श्रेष्ठ कला सिखाने वाला दर्शन है। इसमें आत्मनियंत्रण या आत्मसंयम को आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक उन्नति के लिए अत्यंत आवश्यक बताया गया है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध भूमि में आत्मनियंत्रण की आवश्यकता समझाई, जो आज के हर मानव के लिए भी उतनी ही

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गीता के अनुसार लोकव्यवहार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

परिचय भगवद्गीता केवल आध्यात्मिक या धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि एक व्यावहारिक जीवन-दर्शन भी है। इसमें न केवल आत्मा और परमात्मा की बात होती है, बल्कि दैनिक जीवन और समाज में किस प्रकार आचरण करना चाहिए – इसका भी विस्तृत मार्गदर्शन मिलता है। गीता के अनुसार ‘लोकव्यवहार’ का अर्थ है – समाज में रहते हुए

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गीता के अनुसार ध्यानयोग पर प्रकाश डालिए।

परिचय भगवद्गीता में ध्यानयोग एक महत्वपूर्ण मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य आत्म-शुद्धि, आत्मज्ञान और परमात्मा से एकत्व की प्राप्ति कर सकता है। यह मार्ग मानसिक शांति, आत्मिक उन्नति और मोक्ष की दिशा में साधक को अग्रसर करता है। ध्यानयोग विशेष रूप से गीता के छठे अध्याय में विस्तार से वर्णित है। ध्यानयोग की परिभाषा ‘ध्यान’

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गीता के अनुसार कर्मसंन्यास के भाव को स्पष्ट कीजिए।

परिचय भगवद्गीता में कर्मसंन्यास का विचार गूढ़ और गहन रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह केवल बाहरी कर्मों के त्याग की बात नहीं करता, बल्कि मन, बुद्धि और आत्मा के स्तर पर कर्म से जुड़े अहंकार, इच्छा और फल की अपेक्षा के त्याग की बात करता है। गीता में श्रीकृष्ण ने स्पष्ट किया है

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योग की परिभाषा पर विस्तृत लेख लिखिए।

परिचय ‘योग’ शब्द भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता का मूल स्तंभ है। भगवद्गीता में योग को जीवन जीने की एक समग्र और संतुलित पद्धति के रूप में प्रस्तुत किया गया है। योग न केवल शरीर की क्रियाओं को संतुलित करता है, बल्कि मन, आत्मा और बुद्धि को भी शुद्ध करता है। इस लेख में हम योग

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गीता के अनुसार ज्ञानयोग पर प्रकाश डालिए।

परिचय भगवद्गीता में जीवन के अनेक मार्गों की चर्चा की गई है – जिनमें प्रमुख हैं: कर्मयोग, भक्तियोग, ध्यानयोग और ज्ञानयोग। ज्ञानयोग (Path of Knowledge) आत्मा और परमात्मा के यथार्थ ज्ञान द्वारा मुक्ति प्राप्त करने का मार्ग है। यह बौद्धिक एवं चिंतनशील व्यक्तियों के लिए विशेष उपयुक्त माना गया है। ज्ञानयोग की परिभाषा ज्ञानयोग वह

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गीता में एकात्ममनस्वभाव पर विस्तार से निबंध लिखिए।

परिचय भगवद्गीता में जीवन और आत्मा के गूढ़ रहस्यों की व्याख्या की गई है। इनमें एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है – ‘एकात्ममनस्वभाव’। यह शब्द गीता में उस मानसिक स्थिति को दर्शाता है जिसमें व्यक्ति का मन, बुद्धि और आत्मा – तीनों एक ही लक्ष्य में लीन हो जाते हैं। यह स्थिति आध्यात्मिक साधना और आत्मज्ञान

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