‘पृथ्वीराज रासो’ की प्रामाणिकता–अप्रामाणिकता से जुड़े विभिन्न मुद्दों का विश्लेषण कीजिए।

प्रस्तावना

‘पृथ्वीराज रासो’ हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसे चंद बरदाई ने रचा। यह ग्रंथ पृथ्वीराज चौहान के जीवन, पराक्रम और संघर्षों को छंदबद्ध रूप में प्रस्तुत करता है। हालांकि, इसकी ऐतिहासिक प्रामाणिकता को लेकर विद्वानों के बीच मतभेद हैं। कुछ इसे इतिहास का स्त्रोत मानते हैं तो कुछ इसे काव्य कल्पना का परिणाम मानते हैं। इस निबंध में ‘पृथ्वीराज रासो’ की प्रामाणिकता और अप्रामाणिकता से जुड़े मुद्दों का विश्लेषण किया गया है।

1. प्रामाणिकता के पक्ष में तर्क

1.1 समकालीनता

चंद बरदाई को पृथ्वीराज चौहान का समकालीन माना जाता है। इसलिए यह कहा जाता है कि उन्होंने जो लिखा है, वह प्रत्यक्ष अनुभव और जानकारी पर आधारित है।

1.2 ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन

रासो में तराइन के युद्ध, मोहम्मद गौरी से संघर्ष, दिल्ली का शासन और पृथ्वीराज की वीरता का उल्लेख मिलता है। इन घटनाओं का समर्थन अन्य ऐतिहासिक स्त्रोतों से भी होता है, जिससे इसकी विश्वसनीयता बढ़ती है।

1.3 तत्कालीन संस्कृति और सामाजिक संरचना

ग्रंथ में वर्णित रीति-रिवाज, दरबारी जीवन और युद्ध की शैली तत्कालीन समाज को दर्शाते हैं। यह सामाजिक इतिहास का भी एक सशक्त दस्तावेज बनाता है।

2. अप्रामाणिकता के पक्ष में तर्क

2.1 अतिशयोक्ति और कल्पना

‘पृथ्वीराज रासो’ में अनेक घटनाएं अलौकिक और अतिशयोक्तिपूर्ण रूप में वर्णित हैं। जैसे, पृथ्वीराज द्वारा अंधा होने के बावजूद मोहम्मद गौरी को शब्दभेदी बाण से मारना — यह ऐतिहासिक रूप से सिद्ध नहीं है और काव्य कल्पना का हिस्सा लगता है।

2.2 पाठों का अंतर

रासो के अनेक संस्करण उपलब्ध हैं, जिनमें घटनाओं और छंदों की भिन्नता पाई जाती है। इससे मूल ग्रंथ की प्रमाणिकता पर प्रश्नचिन्ह लगता है।

2.3 अन्य स्रोतों से भिन्नता

इतिहासकारों जैसे हसन निजामी, मिन्हाज-उस-सिराज आदि की फारसी रचनाओं में पृथ्वीराज चौहान और गौरी की घटनाएं भिन्न प्रकार से प्रस्तुत की गई हैं। इन दोनों में कई विरोधाभास मिलते हैं।

2.4 समय का अंतर

कुछ विद्वानों का मानना है कि ‘पृथ्वीराज रासो’ का मूल भाग तो चंद बरदाई द्वारा लिखा गया था, लेकिन बाद में इसमें बहुत से अंश जोड़े गए, जिससे इसकी ऐतिहासिकता पर प्रभाव पड़ा।

3. आलोचनात्मक मूल्यांकन

‘पृथ्वीराज रासो’ एक वीर रस प्रधान काव्य है। इसका उद्देश्य केवल ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन नहीं, बल्कि वीरता, साहस और राष्ट्र गौरव को उजागर करना भी रहा है। काव्य शैली में रचना होने के कारण इसमें कल्पनात्मक तत्वों की उपस्थिति स्वाभाविक है।

4. साहित्यिक महत्व

चाहे इसकी ऐतिहासिकता पर प्रश्न हो, लेकिन इसका साहित्यिक महत्व अत्यधिक है। यह रचना हिंदी वीर काव्य परंपरा की आधारशिला मानी जाती है। इसमें छंद योजना, वीरता का चित्रण, राष्ट्रभक्ति की भावना और भाषा की शक्ति स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।

निष्कर्ष

‘पृथ्वीराज रासो’ की प्रामाणिकता को लेकर अनेक मत हैं। कुछ इसे ऐतिहासिक दस्तावेज मानते हैं, जबकि कुछ इसे मात्र वीर काव्य। यद्यपि इसमें ऐतिहासिक त्रुटियाँ हैं, फिर भी इसका सांस्कृतिक, साहित्यिक और राष्ट्रीय महत्व असंदिग्ध है। इसे पढ़ते समय पाठकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि यह इतिहास नहीं, बल्कि इतिहास पर आधारित काव्य रचना है, जिसमें कल्पना और यथार्थ का सुंदर समन्वय है।

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