नरसिंह तथा वामन लीला पर टिप्पणी लिखिए।

परिचय

भगवान विष्णु के दशावतारों में नरसिंह और वामन अवतार का अत्यंत विशेष स्थान है। ये दोनों अवतार धर्म की स्थापना, अधर्म के नाश और भक्तों की रक्षा हेतु हुए थे। ये लीलाएँ केवल पौराणिक कथाएँ नहीं हैं, बल्कि गहरे नैतिक और आध्यात्मिक संदेशों को प्रस्तुत करती हैं। इस लेख में हम नरसिंह और वामन लीला पर संक्षिप्त किंतु सटीक टिप्पणी प्रस्तुत करेंगे।

नरसिंह अवतार

नरसिंह अवतार भगवान विष्णु ने अपने परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा और असुर हिरण्यकशिपु के विनाश हेतु लिया था। यह अवतार आधा मनुष्य और आधा सिंह के रूप में हुआ, जो बहुत ही अद्वितीय है।

लीला का सार:

  • हिरण्यकशिपु को वरदान प्राप्त था कि वह न तो मनुष्य से मरेगा, न पशु से, न दिन में, न रात में, न बाहर, न अंदर।
  • भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप में संध्या के समय, द्वार की चौखट पर, अपने नाखूनों से उसे मारकर वरदान को निष्फल किया।
  • यह लीला दर्शाती है कि ईश्वर अपने भक्तों की रक्षा हेतु कोई भी रूप ले सकते हैं।

आध्यात्मिक संदेश:

  • ईश्वर की योजना मनुष्य की सोच से परे होती है।
  • सच्ची भक्ति के आगे कोई भी शक्ति टिक नहीं सकती।
  • अहंकार का अंत निश्चित है।

वामन अवतार

वामन अवतार भगवान विष्णु ने असुर राजा बलि से स्वर्ग और पृथ्वी का पुनः देवों को दिलाने के लिए लिया था। वामन एक बौने ब्राह्मण बालक के रूप में प्रकट हुए थे।

लीला का सार:

  • वामन ने बलि से तीन पग भूमि माँगी।
  • पहले पग में आकाश, दूसरे में पृथ्वी और तीसरे पग में बलि का अहंकार समेट लिया।
  • बलि को पाताल लोक भेजा गया, परंतु उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे अमरता का वरदान भी दिया।

आध्यात्मिक संदेश:

  • विनम्रता में शक्ति होती है – वामन रूप छोटा दिखता है, पर उसकी शक्ति अपार है।
  • दान और भक्ति का मेल ही व्यक्ति को महान बनाता है।
  • ईश्वर विनम्रता का मूल्य समझते हैं और अहंकार को दूर करते हैं।

नरसिंह और वामन लीला में समानता

  • दोनों अवतारों में अधर्म का नाश और भक्तों की रक्षा प्रमुख उद्देश्य है।
  • दोनों में विष्णु ने अप्रत्याशित और चमत्कारी रूप अपनाया।
  • दोनों कथाएँ दर्शाती हैं कि भक्ति, दान और विनम्रता से ही मोक्ष और ईश्वर की कृपा संभव है।

निष्कर्ष

नरसिंह और वामन लीलाएँ केवल धार्मिक आख्यान नहीं, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षाएँ हैं। ये हमें यह सिखाती हैं कि जब-जब अधर्म बढ़ेगा, तब-तब ईश्वर अवतार लेकर धर्म की रक्षा करेंगे। साथ ही, विनम्रता, दान और भक्ति जैसे गुणों को अपनाकर हम भी जीवन में दिव्यता प्राप्त कर सकते हैं।

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