निम्नलिखित पद्यांशों का सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (क) सरस सुमन की दुर्गन्ध बही

पद्यांश

सरस सुमन की दुर्गन्ध बही
अपनी विद्रूपता अलग पकाई।
वीरन बन सूख गई डाली,
काँपी साँसें सन्नता अंगुलाई।
तीन प्रकार टेर बाँधी
पीड़ित निश्चल निर्जन की अंगड़ाई।
आँखों चढ़ मरा एक भ्रम
लगी साँस सजल सन्नता से जुगलबंदी।

संदर्भ

यह पद्यांश आधुनिक हिंदी कविता की नई कविता शैली से लिया गया है जिसमें मानवीय संवेदना, अस्तित्व की बेचैनी और समाज की विद्रूपता को गहराई से उकेरा गया है। यह कविता अज्ञेय या इसी प्रवृत्ति के कवियों के काव्य सौंदर्य का प्रतिनिधित्व करती है।

प्रसंग

इस कविता में कवि ने प्रकृति के माध्यम से मानवीय जीवन की विकृतियों, यंत्रणाओं और अंदरूनी संघर्ष को चित्रित किया है। यह पद्यांश प्रतीकात्मक शैली में जीवन की कठोर सच्चाइयों को दर्शाता है।

व्याख्या

“सरस सुमन की दुर्गन्ध बही” – यह पंक्ति दर्शाती है कि जो फूल (सुमन) सौंदर्य, सुगंध और सकारात्मकता का प्रतीक होता है, अब उसमें से दुर्गन्ध आ रही है। यह जीवन की गिरावट और मूल्यों के पतन को इंगित करता है।

“अपनी विद्रूपता अलग पकाई” – समाज में फैली कुरूपता अब खुलकर सामने आ रही है। मानवीय चरित्र और संवेदनाएं खो चुकी हैं।

“वीरन बन सूख गई डाली” – यह पंक्ति आशा और प्रेम की समाप्ति को दर्शाती है। डाली (शाखा) जो जीवनदायिनी होती है, अब वीरान हो चुकी है।

“तीन प्रकार टेर बाँधी” – यह पंक्ति संभवतः जीवन की तीन अवस्थाओं या तीन पीड़ाओं की ओर संकेत करती है। यह मानव जीवन की विवशता और पीड़ा का प्रतीक है।

“आँखों चढ़ मरा एक भ्रम” – जीवन की सच्चाइयों का सामना करने पर जो मोह, माया या भ्रम था, वह टूट चुका है।

“लगी साँस सजल सन्नता से जुगलबंदी” – अब जीवन और मौन के बीच गहराई से तालमेल स्थापित हो गया है। यह दर्शाता है कि अब पीड़ा और मौन ही जीवन का संगीत बन चुके हैं।

निष्कर्ष

इस पद्यांश में कवि ने आधुनिक युग की विद्रूपता, अस्तित्व की बेचैनी और मानव संवेदना के ह्रास को प्रतीकों और बिम्बों के माध्यम से अत्यंत प्रभावी रूप में चित्रित किया है। यह नई कविता की शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है जहाँ सजीवता और सन्नाटा एक-दूसरे से संवाद करते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Disabled !