परिचय
भारतीय धर्म, दर्शन और संस्कृति में ‘शक्ति’ और ‘गणेश’ दोनों की विशिष्ट भूमिका है। शक्ति को सृष्टि की मूल ऊर्जा माना जाता है जबकि गणेश को सभी शुभ कार्यों की शुरुआत में पूज्य माना जाता है। ये दोनों देवता केवल धार्मिक उपासना के विषय नहीं हैं, बल्कि जीवन दर्शन के भी प्रतीक हैं। इस लेख में हम शक्ति और गणेश के स्वरूप को विस्तार से समझेंगे।
शक्ति का स्वरूप
‘शक्ति’ का अर्थ होता है – ऊर्जा, बल, सामर्थ्य। हिंदू धर्म में शक्ति को देवी का रूप माना गया है जो संपूर्ण ब्रह्मांड को चलाने वाली शक्ति है। वेदों और उपनिषदों में उन्हें आदिशक्ति, योगमाया, दुर्गा, काली आदि नामों से जाना गया है।
शक्ति के रूप:
- दुर्गा: दुष्टों का संहार करने वाली शक्ति।
- लक्ष्मी: धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी।
- सरस्वती: ज्ञान, संगीत और विद्या की अधिष्ठात्री।
- काली: समय, मृत्यु और परिवर्तन की शक्ति।
शक्ति की विशेषताएँ:
- सृजन, पालन और संहार – तीनों कार्यों की जननी।
- सहज, करुणामयी, किंतु आवश्यकता पड़ने पर रौद्र भी।
- भक्तों को शक्ति, साहस और आत्मबल प्रदान करती हैं।
गणेश का स्वरूप
गणेश जी को ‘विघ्नहर्ता’, ‘सिद्धिदाता’, ‘बुद्धिप्रदाता’ और ‘गजानन’ के नामों से जाना जाता है। वे भगवान शिव और पार्वती के पुत्र हैं। उनकी पूजा हर शुभ कार्य की शुरुआत में की जाती है।
गणेश के प्रतीकात्मक अंग:
- बड़ा मस्तक: विवेक और ज्ञान का प्रतीक।
- छोटे नेत्र: एकाग्रता का संकेत।
- बड़ा पेट: सहनशीलता और संतुलन का प्रतीक।
- ट्रंक (सूँड़): लचीलापन और कार्यकुशलता का प्रतीक।
गणेश की विशेषताएँ:
- विघ्नों को दूर करने वाले।
- विद्या, कला और वाणी के स्वामी।
- नवीन आरंभ के अधिष्ठाता।
शक्ति और गणेश के बीच संबंध
गणेश देवी शक्ति (पार्वती) के पुत्र हैं। शक्ति की कृपा से ही गणेश को सभी देवताओं में प्रथम पूज्य स्थान प्राप्त हुआ। शक्ति उनकी जननी और आंतरिक शक्ति की स्त्रोत हैं।
समाज में प्रासंगिकता
- शक्ति हमें आत्मबल देती है, जिससे हम समस्याओं का सामना कर सकें।
- गणेश हमें विवेक, सरलता और सफलता प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं।
निष्कर्ष
शक्ति और गणेश का स्वरूप भारतीय आध्यात्मिक चेतना का आधार हैं। जहां शक्ति हमें साहस और शक्ति प्रदान करती है, वहीं गणेश जी ज्ञान और सफलता के प्रतीक हैं। इन दोनों का पूजन जीवन में संतुलन, सौंदर्य, विजय और संतोष की प्राप्ति कराता है।
