परिचय
राम भारतीय संस्कृति में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजनीय हैं। वे केवल एक राजा या योद्धा नहीं, बल्कि धर्म, न्याय, शौर्य और करुणा के प्रतीक हैं। भगवद्गीता के विभूतियोग में भगवान श्रीकृष्ण ने विभिन्न दिव्य रूपों का वर्णन करते हुए कहा कि वे स्वयं श्रीराम के रूप में प्रकट होते हैं। शस्त्रधारी राम का स्वरूप हमें एक ऐसे योद्धा का दर्शन कराता है जो सत्य और धर्म के लिए शस्त्र उठाता है, किंतु कभी भी हिंसा का अनुचित प्रयोग नहीं करता।
राम का शस्त्रधारी स्वरूप
- राम का शस्त्र केवल बाह्य युद्ध के लिए नहीं, बल्कि अधर्म के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए था।
- उनका धनुष ‘कोदंड’ उनके दृढ़ निश्चय और संकल्प का प्रतीक है।
- राम शस्त्रधारी होते हुए भी शांत, विनम्र और मर्यादित हैं – यही उन्हें विशेष बनाता है।
शस्त्रधारी राम का उद्देश्य
राम ने कभी शस्त्र का प्रयोग स्वार्थ, क्रोध या अहंकार में नहीं किया। उनका प्रत्येक युद्ध धर्म के पक्ष में था। रावण जैसे अत्याचारी का वध कर उन्होंने समाज में न्याय और मर्यादा की पुनः स्थापना की।
राम और युद्ध नीति
- राम युद्ध में भी नीति और मर्यादा का पालन करते थे।
- उन्होंने रावण को भी पहले चार अवसरों पर शांति का मार्ग सुझाया।
- वध के पश्चात उन्होंने रावण का सम्मान करते हुए लक्ष्मण से उसकी विद्वता सीखने को कहा।
गीता में राम का महत्व
“रामः शस्त्रभृतामहम्।”
– भगवद्गीता 10.31
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – “मैं शस्त्रधारियों में श्रीराम हूँ।” यह कथन स्पष्ट करता है कि राम ईश्वर का ही अवतार हैं जो युद्ध में भी धर्म, प्रेम और मर्यादा को सर्वोच्च रखते हैं।
शस्त्रधारी राम और आज का युग
आज जब समाज में शक्ति का दुरुपयोग आम हो गया है, राम हमें सिखाते हैं कि शस्त्र का प्रयोग केवल रक्षण के लिए होना चाहिए, विनाश के लिए नहीं। वे हमें बताते हैं कि सच्ची शक्ति वही है जो संयमित हो और धर्म के अनुरूप हो।
निष्कर्ष
शस्त्रधारी राम का स्वरूप केवल योद्धा का नहीं, अपितु धर्म, सत्य और मर्यादा के प्रतीक का है। वे हमें सिखाते हैं कि बल का प्रयोग सदैव उचित समय और उचित कारण के लिए होना चाहिए। राम का जीवन आदर्श है कि कैसे शक्ति और सेवा का संतुलन साधा जा सकता है।
