September 2025

शस्त्रधारी राम के स्वरूप को विस्तार से निरूपित कीजिए।

परिचय राम भारतीय संस्कृति में मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजनीय हैं। वे केवल एक राजा या योद्धा नहीं, बल्कि धर्म, न्याय, शौर्य और करुणा के प्रतीक हैं। भगवद्गीता के विभूतियोग में भगवान श्रीकृष्ण ने विभिन्न दिव्य रूपों का वर्णन करते हुए कहा कि वे स्वयं श्रीराम के रूप में प्रकट होते हैं। शस्त्रधारी राम […]

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MBG-004: अक्षरब्रह्म एवं राजविद्यायोग – Assignment Answers

MBG-004 Assignment: सभी उत्तरों की लिंक यहाँ पर MBG-004 (अक्षरब्रह्म एवं राजविद्यायोग) पाठ्यक्रम के सभी प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं। प्रत्येक उत्तर सरल भाषा में और 600+ शब्दों में लिखा गया है ताकि विद्यार्थी इसे आसानी से समझ सकें। 🔗 अन्य विषयों के उत्तर और सहायता के लिए IgnouCorner.com देखें।

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योगिनी विद्या और गीतामृत का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

परिचय भगवद्गीता में न केवल कर्म, ज्ञान और भक्ति की चर्चा की गई है, बल्कि कुछ विशेष शब्दों और अवधारणाओं का उल्लेख भी मिलता है। इनमें ‘योगिनी विद्या’ और ‘गीतामृत’ अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये दोनों तत्व गीता के सार को समझने में हमारी सहायता करते हैं। योगिनी विद्या का अर्थ ‘योगिनी विद्या’ का शाब्दिक अर्थ

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गीता के अनुसार ओम्कार का स्वरूप पर संक्षिप्त लेख लिखिए।

परिचय ‘ॐ’ (ओंकार) भारतीय संस्कृति का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण मंत्र है। भगवद्गीता में ओंकार को ब्रह्म का प्रतीक माना गया है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि यह ओंकार न केवल मंत्र है, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड की ध्वनि, चेतना और ऊर्जा का सार है। इस लेख में हम गीता के अनुसार ओंकार के स्वरूप

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गीता में वर्णित ईश्वर की सत्तता पर संक्षेप में लिखिए।

परिचय भगवद्गीता में ‘ईश्वर की सत्तता’ अर्थात ईश्वर का अस्तित्व, उसकी उपस्थिति, शक्ति और नियंत्रण का सुंदर वर्णन मिलता है। श्रीकृष्ण ने गीता में यह स्पष्ट किया है कि ईश्वर इस संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त है, उसे नियंत्रित करता है, और प्रत्येक जीव में उसकी चेतना विद्यमान है। इस लेख में हम गीता के अनुसार

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विद्या के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

परिचय ‘विद्या’ शब्द का अर्थ होता है – ज्ञान, समझ, और वह बोध जिससे व्यक्ति सत्य को पहचान सके। भगवद्गीता में विद्या केवल शास्त्रों के ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मा, परमात्मा और उनके परस्पर संबंध को जानने की योग्यता को भी ‘विद्या’ कहा गया है। गीता का विद्या सम्बन्धी दृष्टिकोण व्यक्ति को आत्म-ज्ञान

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गीता के अनुसार भक्ति और ज्ञान की समन्वय की विस्तृत से स्पष्ट कीजिए।

परिचय भगवद्गीता में भक्ति और ज्ञान दोनों को ही मोक्ष प्राप्ति के मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया गया है। श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि केवल भक्ति या केवल ज्ञान से नहीं, बल्कि दोनों के समन्वय से ही आत्मिक उन्नति संभव है। यह समन्वय व्यक्ति को ना केवल ईश्वर से जोड़ता है, बल्कि उसे

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विश्व एवं मानवता पर प्रकाश डालिए।

परिचय भगवद्गीता केवल आध्यात्मिकता की बात नहीं करती, बल्कि यह समग्र जीवन दर्शन प्रस्तुत करती है जिसमें ‘विश्व’ और ‘मानवता’ की भावना का गहरा समावेश है। श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश केवल युद्ध के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानव समाज के लिए है। यह उपदेश हमें विश्व की एकता और मानवता के कल्याण

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गीता के अनुसार भगवान की सर्वव्यापकता के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।

परिचय भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को न केवल धर्म और कर्म का उपदेश दिया, बल्कि अपने ‘सर्वव्यापक’ स्वरूप को भी स्पष्ट किया। यह स्वरूप दर्शाता है कि भगवान केवल एक स्थान, एक मूर्ति या एक व्यक्ति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हैं। सर्वव्यापकता का अर्थ ‘सर्वव्यापकता’ का अर्थ

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अप्रकट एवं प्रकृति पर विस्तृत से लिखिए।

परिचय भगवद्गीता में अप्रकट (अव्यक्त) और प्रकृति (प्रकृत) की अवधारणाओं को गहराई से प्रस्तुत किया गया है। यह दोनों ही तत्व सृष्टि की संरचना, आत्मा की स्थिति और ईश्वर की भूमिका को समझने में सहायक हैं। इस लेख में हम गीता के अनुसार ‘अप्रकट’ और ‘प्रकृति’ के स्वरूप को विस्तार से समझेंगे। प्रकृति का अर्थ

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