परिचय
भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने जीवन के प्रत्येक पक्ष को स्पष्ट रूप से समझाया है। ‘पूज्य’ का अर्थ होता है – जो पूजनीय हो, अर्थात् जिसे आदर, श्रद्धा और समर्पण के साथ पूजा जाए। गीता में पूज्य के स्वरूप की चर्चा करते समय श्रीकृष्ण ने बताया कि ईश्वर ही सर्वपूज्य है, क्योंकि वह सर्वव्यापी, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है।
पूज्य का अर्थ और स्वरूप
‘पूज्य’ वह है जो हमारे जीवन का आदर्श हो, जो हमारे मन को प्रेरणा दे और जिसका अनुसरण कर हम आत्मिक उन्नति कर सकें। गीता में पूज्य के रूप में भगवान स्वयं को प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि वे समस्त सृष्टि के कारण, पालक और संहारक हैं।
भगवान का पूज्य स्वरूप
- निर्गुण और सगुण दोनों रूपों में: गीता में भगवान कहते हैं कि वे अदृश्य (निर्गुण) भी हैं और साकार (सगुण) रूप में भी भक्तों के पूज्य हैं।
- विश्व रूप: अध्याय 11 में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया, जिससे स्पष्ट होता है कि समस्त सृष्टि में वे ही व्याप्त हैं।
- आत्मा के रूप में: भगवान प्रत्येक जीव के हृदय में आत्मा के रूप में स्थित हैं, इसीलिए वे पूजनीय हैं।
गीता के श्लोकों में पूज्य स्वरूप की पुष्टि
“मत्तः परतरं नान्यत् किंचित् अस्ति धनञ्जय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव॥”
इस श्लोक में भगवान कहते हैं कि मुझसे ऊपर कोई नहीं है, पूरा ब्रह्मांड मुझमें स्थित है।
पूज्य के अन्य रूप
- गुरु: गीता में ज्ञान प्राप्त करने हेतु गुरु की शरण में जाने की बात कही गई है, अतः गुरु भी पूज्य हैं।
- माता-पिता: धर्म के अनुसार माता-पिता, शिक्षक और धर्मात्मा जन पूजनीय माने गए हैं।
- कर्तव्य: गीता में श्रीकृष्ण ने कर्म को भी पूज्य स्थान दिया है – “कर्मण्येवाधिकारस्ते”।
आधुनिक संदर्भ में पूज्य का महत्व
आज के समय में जब लोग बाहरी चकाचौंध के पीछे भागते हैं, गीता हमें यह सिखाती है कि पूज्य वही है जो हमें सत्य, प्रेम, शांति और आत्मिक विकास की ओर ले जाए। भगवान, गुरु, धर्म और कर्तव्य – ये सब पूज्य के रूप में हमारे जीवन के स्तंभ हैं।
पूज्य की आराधना का उद्देश्य
- आत्मिक शुद्धि और मन की शांति
- अहंकार का नाश और समर्पण का भाव
- ईश्वर से एकता की भावना
- धर्म, सेवा और कर्तव्य का पालन
निष्कर्ष
गीता में पूज्य का स्वरूप केवल मूर्तिपूजा या किसी एक देवता तक सीमित नहीं है, बल्कि वह व्यापक और सार्वभौमिक है। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं को पूज्य बताते हुए यह भी स्पष्ट किया कि हर प्राणी में ईश्वर का अंश है। अतः सच्ची पूजा वही है जो प्रेम, श्रद्धा, सेवा और समर्पण से की जाए।
