परिचय
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को हिंदी साहित्य के आदिकालीन आधुनिक युग का जनक माना जाता है। उन्होंने हिंदी को जन जागरण और सामाजिक सुधार का माध्यम बनाया। उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय भावना का स्पष्ट प्रदर्शन होता है। वे भारत के तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक पतन से चिंतित थे और उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से देशवासियों को जाग्रत करने का प्रयास किया।
राष्ट्रभाव की भावना : परिभाषा
राष्ट्रभाव का तात्पर्य है – अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम, स्वाभिमान, गर्व, समर्पण और उसकी उन्नति के लिए कर्तव्यबोध। यह भावना देश की स्वतंत्रता, संस्कृति, भाषा, समाज और परंपराओं के संरक्षण के लिए व्यक्ति को प्रेरित करती है।
भारतेन्दु की कविता में राष्ट्रभाव
भारतेन्दु जी की कविता में राष्ट्र के प्रति गहरा प्रेम, विदेशी शासन के प्रति विरोध और जनता में चेतना जगाने की भावना स्पष्ट दिखाई देती है। उन्होंने अंग्रेजी शासन द्वारा भारत की दयनीय स्थिति, जनता की अज्ञानता और सांस्कृतिक पतन पर चिंता व्यक्त की।
सप्रसंग उदाहरण:
“नील की खेती देखि कृषक भयउ हतभाग,
कृषक हाय हाय करत, चतुराई करत अंगरेज।”
इस पंक्ति में उन्होंने स्पष्ट किया कि अंग्रेज किस प्रकार किसानों का शोषण कर रहे हैं। नील की खेती का संदर्भ भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद की आर्थिक लूट का प्रतीक है।
अन्य उदाहरण:
“भारत दुर्दशा नाटकम सुनि लीजै,
देखि भारत की यह दुर्दशा, करुणा रोवै।”
इसमें भारतेन्दु ने नाटक के माध्यम से भारत की दयनीय स्थिति का चित्रण करते हुए जनता को जागरूक किया।
राष्ट्रीय चेतना का संचार
- भारतेन्दु ने भारत की प्राचीन गरिमा की याद दिलाई।
- उन्होंने भारतीय संस्कृति, भाषा और परंपराओं को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया।
- जनता को गुलामी की बेड़ियों को पहचानने और स्वतंत्रता की ओर प्रेरित किया।
साहित्य के माध्यम से राष्ट्रभाव
भारतेन्दु मानते थे कि साहित्य समाज का दर्पण है और यह समाज में सुधार का माध्यम बन सकता है। उन्होंने राष्ट्रप्रेम को केवल भावना तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे कर्म में परिणत करने का आह्वान किया।
निष्कर्ष
भारतेन्दु की कविता केवल सौंदर्यबोध तक सीमित नहीं थी, बल्कि उसमें राष्ट्रप्रेम, सामाजिक चेतना और जन जागरण का संदेश भी समाहित था। उनकी रचनाएँ आज भी हमें यह प्रेरणा देती हैं कि साहित्य के माध्यम से जनचेतना को जाग्रत किया जा सकता है। उनके काव्य में राष्ट्रभाव की भावना कूट–कूट कर भरी हुई है, जो उन्हें राष्ट्रकवि के रूप में प्रतिष्ठित करती है।