सियारामशरण गुप्त की कविता गुप्त जी को क्यों और कब आरंभ हुई? यह कब समाप्त हुई? कविता की ऐतिहासिकता और शैली पर विवेचन कीजिए।

परिचय

सियारामशरण गुप्त हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण कवियों में से एक हैं, जिन्होंने खड़ी बोली को साहित्यिक अभिव्यक्ति के स्तर पर प्रतिष्ठित किया। उनकी कविताएं भारतीय संस्कृति, राष्ट्रप्रेम, नारी सम्मान, सामाजिक चेतना और मानवीय मूल्यों पर आधारित होती थीं। वे छायावाद से पूर्व के युग में भारतीय आत्मा की आवाज बने।

कविता लेखन की शुरुआत और कारण

गुप्त जी का कविता लेखन 1908 ई. में प्रारंभ हुआ जब वे मात्र 15 वर्ष के थे। उन्होंने हिंदी साहित्य को जन-जागरण का माध्यम मानते हुए लेखन की शुरुआत की। उनका मानना था कि कविता के माध्यम से समाज में परिवर्तन संभव है। उन्होंने आरंभ में ब्रज भाषा में लिखा लेकिन बाद में खड़ी बोली को अपनाया।

कविता लेखन की समाप्ति

गुप्त जी का साहित्यिक लेखन लगभग 1970 तक सक्रिय रूप में रहा। वे जीवन के अंतिम वर्षों तक साहित्यिक गतिविधियों से जुड़े रहे। उनकी अंतिम प्रमुख कृति “भारत-भारती” को राष्ट्रनिर्माण में प्रेरणास्रोत माना जाता है।

कविता की ऐतिहासिकता

  • गुप्त जी की कविता का काल भारत की स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि में लिखा गया।
  • उन्होंने सामाजिक विषमता, नारी की दशा, धार्मिक आडंबर और राजनीतिक शोषण पर प्रभावशाली ढंग से लेखनी चलाई।
  • उनकी कविताओं में 1857 की क्रांति, भारत की गौरवगाथा, महापुरुषों की जीवनी और भारतीय संस्कृति का अद्भुत संगम मिलता है।
  • उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई, चंद्रगुप्त, बुद्ध जैसे ऐतिहासिक पात्रों को अपनी रचनाओं में स्थान दिया।

कविता की शैली

गुप्त जी की शैली गंभीर, सरस और प्रेरणादायक होती थी। उन्होंने प्राचीनता और आधुनिकता का अद्भुत सामंजस्य प्रस्तुत किया।

मुख्य विशेषताएँ:

  • खड़ी बोली का प्रयोग: उन्होंने खड़ी बोली को साहित्यिक भाषा के रूप में प्रतिष्ठा दिलाई।
  • नैतिकता और देशभक्ति: उनकी कविता का मूल स्वर नैतिकता, आदर्शवाद और देशप्रेम था।
  • प्रभावशाली पात्रों का चित्रण: ऐतिहासिक और पौराणिक पात्रों के माध्यम से उन्होंने समाज को प्रेरित किया।
  • सरल और भावपूर्ण भाषा: आम जनमानस के लिए उपयुक्त और सरल भाषा में गंभीर विषयों की प्रस्तुति की।

महत्वपूर्ण कृतियाँ

  • भारत-भारती
  • जयद्रथ वध
  • साकेत
  • यशोधरा
  • चंद्रगुप्त

निष्कर्ष

सियारामशरण गुप्त का साहित्यिक योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उनकी कविताएं केवल साहित्यिक अभिव्यक्ति नहीं बल्कि समाज और राष्ट्र के उत्थान का साधन थीं। उनका काव्य इतिहास, संस्कृति और राष्ट्रचेतना का अद्वितीय संगम है, जो आज भी प्रासंगिक है।

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