नई कविता

निम्नलिखित पद्यांशों का सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (ग) हे अग्निशिखा, ज्वालामुखी गगन का अप्सर

पद्यांश हे अग्निशिखा, ज्वालामुखी गगन का अप्सर, जो ऊपर लिखा जा चुका, कह दे उप्सर–उप्सर, अशिखित रक्त वह खुले अक्षरों लिखे, जो नीरव हो गईं व्यथाएँ, वो चीखें। सिर पत्थर हो चले हैं देश–देश–देश, उठे जो बोल, बने वे शूल–शूल–शूल, बोल–कुम्भ–कुम्भ–कुम्भ बना धूल–धूल–धूल, अवज्ञा ममता तनु उठा हो हार–हार। संदर्भ यह पद्यांश क्रांतिकारी और प्रगतिशील […]

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निम्नलिखित पद्यांशों का सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (ख) विषमता की पीड़ा से व्याकुल

पद्यांश विषमता की पीड़ा से व्याकुल हो रहा संचित विषम समय; यही दुख पिघल निकला है स्वप्न मानव समाज बना जो महामय। जिसमें समरसता का अभाव, अपनत्व नहीं केवल जातीय तिरस्कार, व्यथा से नीति बहलती केवल विविध स्वरूप लिये गुण गुनगुनाता। संदर्भ यह पद्यांश नई कविता शैली का उदाहरण है जिसमें कवि समाज में व्याप्त

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निम्नलिखित पद्यांशों का सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (क) सरस सुमन की दुर्गन्ध बही

पद्यांश सरस सुमन की दुर्गन्ध बही अपनी विद्रूपता अलग पकाई। वीरन बन सूख गई डाली, काँपी साँसें सन्नता अंगुलाई। तीन प्रकार टेर बाँधी पीड़ित निश्चल निर्जन की अंगड़ाई। आँखों चढ़ मरा एक भ्रम लगी साँस सजल सन्नता से जुगलबंदी। संदर्भ यह पद्यांश आधुनिक हिंदी कविता की नई कविता शैली से लिया गया है जिसमें मानवीय

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