परिचय
भारतीय धर्म और संस्कृति में शंकर (महादेव) और विष्णु दो प्रमुख देवता हैं जो ब्रह्मांड की संचालन शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। शंकर विनाश और तपस्या के देवता हैं, जबकि विष्णु पालन और संतुलन के रक्षक हैं। दोनों देवों की उपासना सम्पूर्ण भारतवर्ष में होती है और गीता सहित अनेक शास्त्रों में इनकी महिमा का वर्णन है।
भगवान शंकर का स्वरूप
- शिव त्रिदेवों में विनाशक हैं – वे पुरानी व्यवस्था का अंत करके नयी सृष्टि का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
- उनका तीसरा नेत्र ज्ञान और विवेक का प्रतीक है।
- शिव का रुद्र रूप क्रोध और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि शांत रूप करुणा और तपस्या का।
- वे कैलाश पर निवास करते हैं और सर्प, चंद्रमा, गंगा आदि उनके प्रतीक हैं।
भगवान विष्णु का स्वरूप
- विष्णु पालनकर्ता हैं – वे धर्म की रक्षा और असुरों के विनाश हेतु अवतार लेते हैं।
- दशावतार जैसे राम, कृष्ण, नृसिंह, वामन आदि उनके स्वरूप हैं।
- विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर विश्राम करते हैं – जो संतुलन और शांति का प्रतीक है।
- उनके चार हाथों में चक्र, गदा, शंख और पद्म होते हैं – ये धर्म, शक्ति, विजय और ज्ञान का प्रतीक हैं।
शंकर और विष्णु का परस्पर संबंध
हालांकि शंकर और विष्णु दो भिन्न कार्यों के प्रतीक हैं, लेकिन दोनों ब्रह्म की अभिव्यक्ति हैं। शिव विष्णु के भक्त हैं और विष्णु शिव के। अनेक पुराणों में दोनों के परस्पर पूजन की कथाएँ मिलती हैं।
उदाहरण – हरिहर रूप, जिसमें शिव और विष्णु एक शरीर के दो भाग होते हैं, इस समन्वय का प्रमाण है।
गीता में दोनों की महिमा
भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी विभूतियों का वर्णन करते हुए कहा कि वे समस्त देवों में श्रेष्ठ हैं और सभी देवताओं की शक्तियाँ उन्हीं में समाहित हैं। विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में स्वयं गीता में उपस्थित हैं, और शिव को भी परम ज्ञानी योगियों द्वारा ध्यान में रखा जाता है।
शंकर और विष्णु की उपासना
- शिव: महाशिवरात्रि, श्रावण मास, रुद्राभिषेक आदि उनके पूजन के प्रमुख रूप हैं।
- विष्णु: एकादशी व्रत, रामनवमी, जन्माष्टमी आदि में विष्णु के रूपों की पूजा होती है।
आधुनिक संदर्भ में महत्व
आज के युग में जहाँ असंतुलन और अराजकता बढ़ रही है, शिव और विष्णु दोनों का संतुलित आदर्श अपनाना आवश्यक है – शिव से विवेक, नियंत्रण और त्याग सीखें, तो विष्णु से कर्तव्य, सेवा और धैर्य।
निष्कर्ष
शंकर और विष्णु का स्वरूप भारतीय अध्यात्म का मूल आधार है। ये केवल देव नहीं, बल्कि जीवन के दो आवश्यक सिद्धांत हैं – त्याग और पालन। गीता के सिद्धांतों के अनुसार, इन दोनों के गुणों को अपनाकर मनुष्य जीवन को सफल और संतुलित बना सकता है।
