परिचय
भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि यह एक ऐसा मार्गदर्शक है जो मनुष्य को धर्म और अधर्म के बीच का भेद समझाता है। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन के हर मोड़ पर धर्म का पालन करने की प्रेरणा दी। धर्म और अधर्म को समझना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यह जीवन के मूलभूत निर्णयों को प्रभावित करता है।
धर्म की परिभाषा गीता के अनुसार
गीता में धर्म का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं है, बल्कि यह अपने कर्तव्यों, नैतिकता और जीवन मूल्यों का पालन करना है। धर्म का वास्तविक अर्थ है – जो मनुष्य को ऊँचा उठाए, सच्चाई, न्याय और समर्पण की ओर ले जाए।
अधर्म की परिभाषा
गीता में अधर्म को वह कार्य कहा गया है जो अन्याय, लोभ, घृणा, मोह, अहंकार आदि से प्रेरित हो। जब व्यक्ति अपने निजी स्वार्थ के कारण सत्य, न्याय और कर्तव्य से भटक जाता है, तब वह अधर्म के मार्ग पर चलता है।
श्रीकृष्ण का धर्म का संदेश
- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्ध करने के लिए प्रेरित किया क्योंकि वह युद्ध धर्म के पक्ष में था।
- उन्होंने कहा कि जो कार्य अपने स्वधर्म (व्यक्तिगत कर्तव्य) के अनुसार किया जाए, वही सच्चा धर्म है।
- धर्म का पालन करना कभी भी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करता, बल्कि यह जीवन भर निभाए जाने वाला कर्तव्य है।
अर्जुन की दुविधा और धर्म-अधर्म का संघर्ष
अर्जुन युद्ध से पहले अपने संबंधियों को देखकर विचलित हो जाते हैं और सोचते हैं कि क्या अपने ही लोगों को मारना धर्म होगा? श्रीकृष्ण उन्हें समझाते हैं कि यह युद्ध अधर्म के विनाश के लिए है और इसे रोकना ही अधर्म होगा।
धर्म की विशेषताएँ
- निष्काम भाव से कर्म करना
- सत्य और न्याय का साथ देना
- स्वधर्म का पालन करना
- अहंकार, मोह और लोभ से दूर रहना
अधर्म के परिणाम
- आत्मिक अशांति
- समाज में असंतुलन
- मानवता का पतन
- पुनर्जन्म में दुःख और अधोगति
आधुनिक संदर्भ में धर्म-अधर्म
आज के युग में धर्म का अर्थ केवल धार्मिक क्रियाएँ नहीं है, बल्कि अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वाह करना है। भ्रष्टाचार, अन्याय, झूठ, लालच – ये अधर्म के रूप हैं और इनसे दूर रहना ही सच्चा धर्म है।
निष्कर्ष
गीता में धर्म और अधर्म की स्पष्ट व्याख्या दी गई है। धर्म वह शक्ति है जो व्यक्ति को ऊँचा उठाती है और अधर्म उसे नीचे गिराता है। श्रीकृष्ण का उपदेश हमें यह सिखाता है कि हर परिस्थिति में धर्म का साथ देना चाहिए और अधर्म के विरुद्ध खड़े होना ही सच्चा जीवन है।
