परिचय
भगवद्गीता में मनुष्य की आंतरिक मानसिक अवस्थाओं का गहन विश्लेषण किया गया है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए, उनमें से एक महत्वपूर्ण विषय है ‘मोह’ – यानी लगाव, भ्रम या असत्य के प्रति आकर्षण। गीता में मोह को आत्मज्ञान प्राप्ति की राह में सबसे बड़ी बाधा माना गया है।
मोह क्या है?
‘मोह’ का अर्थ है – किसी वस्तु, व्यक्ति या विचार के प्रति इतना आकर्षित होना कि हम सत्य, कर्तव्य और धर्म से भटक जाएँ। यह एक मानसिक स्थिति है जो विवेक को ढँक देती है और गलत निर्णय की ओर ले जाती है।
गीता में मोह का चित्रण
महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन ने अपने सगे-संबंधियों को सामने देखा तो वे मोह से ग्रसित हो गए। उन्होंने अपने कर्तव्य को छोड़ने की इच्छा जताई। इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि मोह आत्मा की शुद्धता को ढँकता है और यह व्यक्ति को अधर्म की ओर ले जाता है।
मोह का मनोवैज्ञानिक प्रभाव
- निर्णय की क्षमता का क्षय: मोह के कारण व्यक्ति सही और गलत का भेद नहीं कर पाता।
- अवसाद और भय: मोह से व्यक्ति चिंता, तनाव और भय में फँस जाता है।
- विवेक का नाश: श्रीकृष्ण ने कहा – “मोह से स्मृति भ्रष्ट होती है, स्मृति से बुद्धि नष्ट होती है और बुद्धि से व्यक्ति का पतन होता है।”
श्रीकृष्ण की मोह पर शिक्षा
- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सिखाया कि आत्मा अमर है, इसलिए शरीर के मोह में पड़ना उचित नहीं।
- उन्होंने बताया कि मोह त्याग कर ही व्यक्ति अपने धर्म का पालन कर सकता है।
- मोह का अंत आत्मज्ञान से ही संभव है।
मोह और अज्ञान
गीता में मोह को अज्ञान का परिणाम माना गया है। जब व्यक्ति यह नहीं जानता कि वह आत्मा है और यह शरीर क्षणिक है, तभी वह मोह में फँसता है। जैसे-जैसे ज्ञान बढ़ता है, मोह दूर होता है।
मोह से मुक्ति के उपाय (गीता के अनुसार)
- ज्ञानयोग: आत्मा और शरीर के भेद को जानना।
- कर्मयोग: फल की चिंता छोड़कर कर्तव्य करना।
- भक्तियोग: ईश्वर के प्रति समर्पण और प्रेम।
- संग का त्याग: असत्य और मोहकारी वस्तुओं का त्याग करना।
आधुनिक जीवन में मोह
आज के समय में व्यक्ति धन, संबंध, प्रतिष्ठा, और भौतिक वस्तुओं के मोह में फँसा रहता है। यही मोह उसे तनाव, चिंता, और असंतोष की ओर ले जाता है। गीता का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है – मोह को त्यागो और अपने धर्म का पालन करो।
निष्कर्ष
गीता में मोह के मनोविज्ञान को गहराई से समझाया गया है। श्रीकृष्ण बताते हैं कि मोह से मुक्त होकर ही आत्मा शांति और मोक्ष प्राप्त कर सकती है। मोह त्यागकर हम अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सकते हैं और आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ सकते हैं।
