MBG-002

MBG-002: धर्म-कर्म एवं यज्ञ – Assignment Answers

MBG-002 Assignment: सभी उत्तरों की लिंक नीचे MBG-002 (धर्म-कर्म एवं यज्ञ) के सभी प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं। हर उत्तर सरल हिंदी में और 600+ शब्दों में तैयार किया गया है ताकि विद्यार्थी आसानी से समझ सकें। गीता में धर्म एवं अधर्म पर विस्तार से लिखिए। गीता में मोह के मनोविज्ञान पर प्रकाश डालिये। […]

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गीता में निष्कामता एवं निष्ठा की अवधारणा पर टिप्पणी लिखिए।

परिचय भगवद्गीता में कर्म और भक्ति का जो समन्वय प्रस्तुत किया गया है, उसमें ‘निष्कामता’ और ‘निष्ठा’ की अवधारणाएँ अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते हुए बार-बार यह स्पष्ट किया है कि केवल कर्म करना पर्याप्त नहीं, बल्कि उसे निष्काम भाव और निष्ठा के साथ करना ही सच्चा योग है। निष्कामता की

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गीता के अनुसार अभ्यासी भक्त की अवस्थाओं का संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।

परिचय भगवद्गीता में भक्ति को मोक्ष प्राप्ति का एक सरल, सुंदर और प्रभावशाली मार्ग बताया गया है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भक्तियोग के विभिन्न रूपों की व्याख्या करते हुए ‘अभ्यासी भक्त’ की अवस्थाओं को भी स्पष्ट किया है। अभ्यासी भक्त वह होता है जो नियमित अभ्यास (साधना) के द्वारा ईश्वर की भक्ति में आगे बढ़ता

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गीता के अनुसार सम्पूर्ण गुणात्मक स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

परिचय भगवद्गीता एक ऐसा अद्वितीय ग्रंथ है जो न केवल धार्मिक और दार्शनिक ज्ञान प्रदान करता है, बल्कि व्यक्ति के सम्पूर्ण गुणात्मक स्वरूप (Holistic Qualitative Nature) को भी परिभाषित करता है। गीता में मनुष्य के तीन गुणों – सत, रज और तम – के माध्यम से सम्पूर्ण व्यक्तित्व की व्याख्या की गई है। त्रिगुण –

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गीता के तात्त्विक सौन्दर्य पर निबंध लिखिए।

परिचय भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह भारतीय दर्शन, संस्कृति और जीवन-दृष्टि का सुंदर संगम है। इसके श्लोकों में न केवल आध्यात्मिक ज्ञान है, बल्कि गूढ़ तात्त्विक सौन्दर्य भी समाहित है। गीता की भाषा, विचार, शैली और उद्देश्य – सभी मिलकर इसे एक अद्वितीय सौंदर्यपूर्ण ग्रंथ बनाते हैं। तात्त्विक सौन्दर्य का अर्थ

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गीता में अवतार की संकल्पना को विस्तार से स्पष्ट कीजिए।

परिचय भगवद्गीता में ‘अवतार’ की संकल्पना एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक और दार्शनिक विषय है। गीता के चौथे अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं अपने अवतार के उद्देश्य और कारणों को स्पष्ट करते हैं। अवतार का अर्थ होता है – भगवान का धरती पर किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति हेतु जन्म लेना। अवतार की परिभाषा ‘अवतार’ का

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कर्म की समानभाव स्थिति पर लेख लिखिए।

परिचय भगवद्गीता में कर्म को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। गीता का मूल संदेश है – कर्म करना, लेकिन उसमें समभाव रखना। इसका अर्थ है कि हम अपने हर कार्य को निष्काम भाव से करें और उसके फल को लेकर चिंतित न हों। इस लेख में हम “कर्म की समानभाव स्थिति” का गहराई से विश्लेषण

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कर्मयोगी के वे लक्षण जो अर्जुन अनुसार योग्य व्यक्ति बनाते हैं, लिखिए।

परिचय भगवद्गीता में कर्मयोग एक अत्यंत महत्वपूर्ण दर्शन है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए, उनमें कर्मयोग का विशेष स्थान है। कर्मयोग का अर्थ है – बिना फल की चिंता किए अपना कर्तव्य निभाना। गीता में ऐसा कर्मयोगी व्यक्ति महान माना गया है जो आत्मज्ञान, संतुलन और निष्काम कर्म में स्थित होता है। कर्मयोगी

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गीता में मोह के मनोविज्ञान पर प्रकाश डालिये।

परिचय भगवद्गीता में मनुष्य की आंतरिक मानसिक अवस्थाओं का गहन विश्लेषण किया गया है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए, उनमें से एक महत्वपूर्ण विषय है ‘मोह’ – यानी लगाव, भ्रम या असत्य के प्रति आकर्षण। गीता में मोह को आत्मज्ञान प्राप्ति की राह में सबसे बड़ी बाधा माना गया है। मोह क्या है?

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गीता में धर्म एवं अधर्म पर विस्तार से लिखिए।

परिचय भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि यह एक ऐसा मार्गदर्शक है जो मनुष्य को धर्म और अधर्म के बीच का भेद समझाता है। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन के हर मोड़ पर धर्म का पालन करने की प्रेरणा दी। धर्म और अधर्म को समझना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यह जीवन के

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